बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
डॉ. बी. एस. गुहा ने भारतीय जनजातियों का वर्गीकरण तीन भौगोलिक क्षेत्रों के आधार पर किया है-
दक्षिण क्षेत्र - इसके अन्तर्गत मैसूर, हैदराबाद, ट्रावनकोर कर्ण, आन्ध्र और मद्रास, कुर्ग, कोचीन आते हैं। इन क्षेत्र की प्रमुख जनजातियाँ कोटा, कीडा, कादर, मालायन, इरुला, उराली, पुलयन आदि हैं
उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र - इसके अन्तर्गत पूर्वी पंजाब, पूर्वी कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरी उत्तर प्रदेश और असम के पहाड़ी प्रदेश सम्मिलित हैं। इस प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ खम्बा, गद्दी गुरार, लहोला, कनौटा, भेटिया, जानसारा, नागा, थारू, राभा, कूंकी, कचाटी, खासी आदि हैं।
मध्यवर्ती क्षेत्र - इसके अन्तर्गत बंगाल, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, बिहार, दक्षिणी राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तरीय मुंबई सम्मिलित हैं। इन प्रदेशों की प्रमुख जनजातियाँ संथाल, हो, उराव खरिया, बिरहोर, बैगा गोंड, कोरवा, कोटा, कोल, सुन्डा भील आदि हैं।
संविधान के अनुच्छेद 15 (1) के अन्तर्गत किसी भी नागरिक में धर्म, जाति, वंश, जन्मस्थान एवं निवास स्थान के आधार पर भेदभाव किया जा सकता है परन्तु सार्वजनिक स्थानों के उपयोग करने से किसी को रोका नहीं जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत छुआछूत व अस्पृश्यता को निषिद्ध घोषित कर दिया गया तथा इसका उन्मूलन कर दिया गया।
संविधान के अनुच्छेद 29 के अन्तर्गत कोई भी शिक्षण संस्था जोकि राज्य द्वारा पूर्ण या आंशिक सहायता प्राप्त हो ऐसी संस्था किसी भी व्यक्ति को जाति, वंश, भाषा या धर्म के आधार पर प्रवेश से नहीं रोकेगी।
जनजातियों द्वारा पूर्व से ही स्थानान्तरण खेती की जाती रही है। स्थानान्तरण खेती का आशय एक स्थान पर एक निश्चित समय तक ही रहकर खेती करने से है।
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का जन्म निम्न कारकों से हो सकता है अशिक्षा, अज्ञानता, अन्धविश्वास, परम्परागत मान्यताएँ, निर्धनता, आहार एवं भाग्यवादिता आदि ।
भारतीय जनजातियाँ, जिन्हें सरकारी तौर पर अनुसूचित जनजातियाँ कहा जाता है, ये लोग भी भारतीय संघ के ही सदस्य हैं और इसीलिए उन्हें अब सामाजिक तौर पर पृथक रखना सम्भव ही नहीं रहा है।
भारत की जनजातियों की समस्याएँ सीधी और सरल नहीं हैं। ये समस्याएँ वास्तव में बहुत ही विस्तृत और सम्बन्धित हैं।
पहले भूमि पर जनजातियों का एकाधिकार हुआ करता था और वे उसका प्रयोग अपनी इच्छानुसार करती थीं। अब नए कानूनों ने उनकी पुरानी स्वतंत्रता को छीन लिया है।
परिस्थिति-सम्बन्धी कारणों से और कुछ बाहरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आने से जनजातियों के जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं, जिनमें अग्रलिखित प्रमुख हैं खान- पान, वस्त्र, चिकित्सा का अभाव।
नई शासन व्यवस्था के अन्तर्गत आ जाने से जनजातियों के राजनैतिक जीवन में अनुकूलन की कुछ समस्याएँ स्वतः ही उत्पन्न हो गई हैं। इनमें सबसे प्रमुख समस्या यह है कि नए कानूनों के अन्तर्गत उनके पुराने वंशानुगत मुखिया और पंचायतों की सर्वमान्य सत्ता समाप्त होती जा रही है।
जनजाति एक क्षेत्रीय समुदाय है। प्रत्येक जनजाति एक निश्चित भू-भाग में निवास करती है।
प्रत्येक जनजाति की एक पृथक भाषा होती है। एक जनजाति के सभी सदस्य अपनी भाषा का ही उपयोग करते हैं। भाषा की समानता ही जनजाति लोगों को आपस में बांधे रखती है।
प्रत्येक जनजाति की अपनी एक सामान्य संस्कृति होती है। इस संस्कृति में व्यवहार के कुछ विशेष नियमों, परम्पराओं, प्रथाओं और धार्मिक विश्वासों का समावेश होता है।
जनजाति मौलिक रूप से एक पृथक और स्वतंत्र राजनीतिक इकाई है। लगभग सभी जनजातियों के अपने अलग सामाजिक कानून हैं। इन्हीं के अनुसार व्यक्तियों को दण्ड अथवा पुरस्कार दिया जाता है।
भारत में भौगोलिक पृथक्करण तथा विदेशी एवं औपनिवेशिक शासन के कारण जनजातियों का जीवन एक लम्बे समय तक बहुत उपेक्षित रहा।
जनजातियों की आज एक प्रमुख समस्या गरीबी और बेरोजगारी की है। इसका मुख्य कारण उन कुटीर उद्योगों का पतन हो जाना है जो जंगलों से प्राप्त होने वाले पदार्थों पर निर्भर थे।
एक अध्ययन से यह मालूम हुआ कि भारत में आज मुण्डा जनजाति के 46 प्रतिशत परिवार, गोंड जनजाति के 31 प्रतिशत परिवार और संथाक जनजाति के 27 प्रतिशत परिवार ऋण ग्रस्तता की समस्या के शिकार हैं।
शाब्दिक रूप से सात्मीकरण का अर्थ किसी विशेषता, तत्त्व अथवा गुण का अपने व्यक्तित्व में आत्मसात कर लेना है।
डी. एन. मजूमदार तथा एस. के. श्रीवास्तव द्वारा किये गये अध्ययन भी यह स्पष्ट करते हैं कि अनेक जनजातियों ने हिन्दू जाति व्यवस्था के अनुरूप अपने आप को क्षत्रिय और राजपूत समूहों के रूप में घोषित कर दिया।
जनजाति सन्दर्भ में एकीकरण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से हैं जिसके द्वारा जनजातियाँ बाहरी समूहों के सम्पर्क में आने के बाद भी अपनी परम्परागत सांस्कृतिक विशेषताओं को अपनाकर एक पृथक पहचान बनाने का प्रयत्न करने लगी हैं।
अनुच्छेद 164 (भाग 6 ) के अनुसार बिहार, मध्य प्रदेश और उड़िसा में जनजातीय कल्याण को बचाने के प्रत्यन किये जाएँ।
अनुच्छेद 275 ( भाग 12 ) के अनुसार यह प्रावधान किया गया कि अनुसूचित जनजातियों के कल्याण कार्यों को बढ़ाने और उनसे सम्बन्धित प्रशासनिक सुधार लाने के लिए केन्द्र सरकार द्वारा राज्यों को विशेष आर्थिक सहायता दी जाएगी।
अनुच्छेद 342 के अन्तर्गत राष्ट्रपति तथा प्रदेशों के राज्यपालों की सलाह से किसी भी जनजाति को, अनुसूचित जनजातियों के लिए सभी तरह की सार्वजनिक नौकरियों में 7.50 प्रतिशत स्थान सुरक्षित कर दिए गये हैं।
अनुच्छेद 365 (भाग 4) के अनुसार कि सार्वजनिक सेवाओं के लिए लोगों का चुनाव करते समय अनुसूचित जनजातियों को घोषित करने तथा उसे अनुसूचित जाति की सूची से अलग करने का अधिकार है।
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